दुनिया सिर्फ अपने बारे में सोचती है
इंसान समझता है की सब कुछ उसके इख़्तियार में है।
यही भूल है उसकी , लेकिन करे भी तो क्या आखिर किस्से उम्मीद लगाए
कभी दौलत के पीछे भागता है तो कभी सौहरत के पीछे नादान है नहीं जनता की ये सब कुछ बेईमानी और फ़ना हो जाने वाला है
अपनी मर्ज़ी से तो इस दुनिया में साँस भी लेना मुहाल है फिर क्यों छोड़े हक़ का रास्ता, जालिम के आगे सर कैसे झुका दू खुदा को क्या जवाब देंगे हम रोजे हश्र के दिन क्या होगा हमारे साथ।
दुनिया में अगर आपको कुछ पाना है तो उसके लिए हिम्मत चाहिए बाकी रही बात संघर्ष और मौत की तो जो कौम या जो लोग ख्वाब नहीं देखते वो कुछ पाते भी नही।
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