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Showing posts from February, 2021

कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे

 : हमारे बचपन में कपड़े तीन टाइप के ही होते थे ••• स्कूल का ••• घर का ••• और किसी खास मौके का ••• अब तो ••• कैज़ुअल, फॉर्मल, नॉर्मल, स्लीप वियर, स्पोर्ट वियर, पार्टी वियर, स्विमिंग, जोगिंग, संगीत ड्रेस, फलाना - ढिमका ••• जिंदगी आसान बनाने चले थे ••• पर वह कपड़ों की तरह कॉम्प्लिकेटेड हो गयी है ••• बचपन में पैसा जरूर कम था पर साला उस बचपन में दम था" . "पास में महंगे से मंहगा मोबाइल है पर बचपन वाली गायब वो स्माईल है" . "न गैलेक्सी, न वाडीलाल, न नैचुरल था, पर घर पर जमीं आइसक्रीम का मजा ही कुछ ओर था" . अपनी अपनी बाईक और  कारों में घूम रहें हैं हम पर किराये की उस साईकिल का मजा ही कुछ और था "बचपन में पैसा जरूर कम था पर यारो उस बचपन में दम था कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे  हमारे भी जहाज.. चला करते थे। हवा में.. भी। पानी में.. भी। दो दुर्घटनाएं हुई। सब कुछ.. ख़त्म हो गया।                पहली दुर्घटना जब क्लास में.. हवाई जहाज उड़ाया। टीचर के सिर से.. टकराया। स्कूल से.. निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई। औऱ जहाज बनाना और.. उडा...

तब और अब

       तब एक तौलिया से पूरा घर नहाता था। दूध का नम्बर बारी-बारी आता था। छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था। पिताजी से मार का डर सबको सताता था। बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था। पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार मनाता था। बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था। स्कूल मे बड़े की ताकत से छोटा रौब जमाता था। बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था। धन का महत्व कभी सोच भी न पाता था। बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से मेरा नाता था। मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था। एक छोटी से सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।    अब  तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ, माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे, बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये, कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये, बहन के प्रेम की जगह गर्लफ्रेण्ड आ गई, धन प्रमुख हो गया,अब सब नया चाहिये, नाना आदि औपचारिक हो गये। बटुऐ में नोट हो गये। कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये। बहुत पाया पर कुछ खो गये। रिश्तो के अर्थ बदल गये,  हम जीते तो लगत...

हम कौन से इंसान है....?

 सच्चाई वो रौशनी है , जो आहिस्ता आहिस्ता सभी अंधेरो को निगल लेती है  इंसान दुनिया में सच्चाई से भागता है लेकिन सच सच होता है खुद से ईमानदार आपको होना पड़ेगा तभी आपके जीवन में खुशियां रहेंगी वरना सदियाँ गुजार दी लोगो ने यहाँ पर वो खुसी उन्हें नहीं मिली जिनका उन्हें तलाश था।  हम और आप इंसान है जिस पर खुद और खुदा  को गर्व है लेकिन इंसान तभी तक इंसान कहलाने लायक है जब तक वो अपने से नासमझ मखलूक पर रहम करना उसका दर्द अपने दर्द जैसा महसूस करना उसकी नादानियों गलतियों को माफ़ करना सीख जाए तभी तक वो इंसान है वरना वो इंसान के श्रेणी से बाहर निकल जाता है, पता है इंसान को अल्लाह ने जानवरो से अलग बनाया ताकि हम जानवरो को समझ सके और उनके दुःख दर्द को महसूस कर  उन पर रहम कर सके  जीवन में सिर्फ खुद के लिए जीना ये तो उन कमजर्फ जानवरो को भी आता है  रब ने आपको अक्ल दिया है फीलिंग दी है आपको सभी के दुःख दर्द समझने योग्य बनाया है लेकिन  हम है की रहम करने के बजाय उनपर जुल्म करते है उनको सताते है हम कौन से इंसान है सोचो जरा....?

चलते रहने का नाम ही जीवन है

कभी कभी हमारी जिंदगी ऐसी मोड़ पर आकर ठहर जाती है और  हमें लगने लगता है की सब कुछ थम सी गयी है रुक सी गयी है , चेहरे पर उदासी हो जाती है दिमाग सोचने लगता है की यार क्या हो गया  मेरे साथ इतने अच्छे भले तो  थे हम, न जाने कब उदासी अपनी चादर में हमे लपेट ली और न जाने कितने दिन इस चादर में हमें और  लिपटा रहना पड़ेगा, सच है यार जब से हम बड़े हुए है तब से जिंदगी जीने का मायने ही बदल गया, अब न बेफिक्री रही न वो दिन रहे न वो शामे रही जहाँ हम जिंदगी के बड़े बड़े दुःख को यु भूल जाया करते थे , और अब सोचते है यार ये न किया तो जिन्दा कैसे रहेंगे जीवन को कैसे जियेंगे,   न जाने किन किन सोचे से घिरे हुए है आज हम , कभी कभी तो मन करता है यार यही जिंदगी है तो मर क्यों न जाऊ मै, इतना दर्द कैसे सहेंगे हम, फिर सोचते है बाकी लोगो  के भी जिंदगी में यही तो है सभी संघर्ष  करते है और मैंने बचपन में भी सुना था की  बिना संघर्ष कोई महान नहीं बनता, लेकिन यार सिर्फ संघर्ष ही जीवन में सफलता नहीं दिला सकता  संघर्ष के साथ भी बहोत कुछ है , लेकिन  साथी इसके बावजूद भी जीवन में...

इंसान है आप इंसान ही रहे

 दुनिया में जिसकी जगह जहाँ है वही उसे रहने दे उसपर जुल्म कर उसे बंदी न बनाए,  जिंदगी, जीव, जान  इनमे बहोत ज्यादा  अंतर् नहीं है किसी की जीवन को कैद कर उनका तमासा  बनाकर अपनी जिंदगी को ऐस में मत जियो चंद दिनों के लिए दुनिया में आये हो सभी पर दया करो, रहम करो उन्हें कैद कर उनकी जीवन मत ख़राब करो , ये जहाँ उस क्रिएटर का  है जिसे हम भगवान अल्लाह रब गॉड और न जाने कितने नामों से पुकारते है, याद रखो नेचर से खिलवाड़ इंसान को बहोत भारी पड़ेगी , अपने मजे के लिए या टेम्पेरोरी एन्जॉयमेंट के लिए किसी की लॉन्गर लाइफ मत खराब करो  ये बहोत बड़ा अन्याय है प्रकृति  से और प्रकृति कभी माफ़ नहीं करती तो बचो पंछियो जानवरो और तमाम ऐसे प्राणियों पर दया करो जो कैद में है उनकी भी जीवन है उनके भी अपने घर है उनके भी अपने परिवार  है तो  कृपया करके उनपर रहम करे इंसान है आप इंसान ही रहे  जानवरो पर रहम करे 

जिंदगी एक सड़क की तरह है

 दुनिया में हर इंसान कुछ न कुछ सपने पालता है उन सपनो को पूरा करने के लिए कुछ लोग जी जान  से मेहनत करते है और उन्ही में से कुछ लोग सही समय का इंतजार करते ह। लेकिन  उनमे से कुछ ही लोग होते है जो अपने सपने को पूरा कर पाते है।  जानते हो क्यों ? क्योकि वो उसके  लिए सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार हो जाते है और वो अपने जिद को पाल कर बडा  कर लेते है , अब उनको इससे छोटा कुछ भी नहीं चाहिए होता है उनके लिए वही सपने जिंदगी हो जाते है वो उसी के लिए अपनी जिंदगी को जीना सुरु कर देते है , वो उसी के लिए उठते है उसी के लिए जागते है उसी के लिए खाते है उसी के लिए जिन्दा रहते है , तब कही जाकर वो वहां तक पहुंचते है जहाँ उन्हें जाना होता है , और देखने वालो को लगता है की यार ये कितना अमीर है इसके पास कितना पैसा है कुछ लोग तो इससे ज्यादा बोलने लगते है की हराम की कमाई है ईश्वर के पास इसको हिसाब देना होगा , ईश्वर मेरी नहीं सुनता सिर्फ बड़े को बड़ा बनाता है  गरीब तो गरीब ही रह जाता है अमीर और अमीर बनता जाता है लेकिन उसको ये नहीं पता की ये इतनी आसान नहीं थी जितने आसानी से इसने कह...

मकसदे जिंदगानी

 अच्छा बताओ खुदा ( भगवन ) ने  को क्या जरुरत थी की अरबो खरबो इंसान पैदा करता और फिर उनके खाने पीने रहने सहने की चीजे मुहैय्या करता ? लेकिन शायद जरुरत थी उसे , वो चाहता था कोई मख्लूख ( जीव ) ऐसी हो  जो सजदा करे उसके नाम पर अक्ल हो दलील हो उसके पास  और सब कुछ दे देने के बाद कहा मै रहमान हु मै रहीम हु  सब गुनाह माफ़ कर दूंगा लेकिन शिर्क कभी माफ़ नहीं करूँगा   

कुछ बिसरे बातें यारो की

     कुछ बिसरे बातें  चिड़ियों की ची ची करने से हर रोज सुबह उठ जाते थे, फिर उठकर अपने आँगन में दोबारा से खो जाते थे  माँ कहती थी जल्दी करलो स्कूल तुम्हे भी जाना है  सुनकर यह बातें माँ की हम झटपट अपना मुंह बनाते थे   पर कुछ दोस्त हमारे दरवाजे पर हमको लेने आते थे  हम भी शान से उस झोले को अपने काँधे पर लटकाते थे  न थी कोई बस्ता अपना झोले को ही अपना बस्ता  बनाते थे उस बस्ते  में दो किताबे और दो कॉपी लेकर जाते थे  कुछ कलम बिना ही ढक्कन के जब झोले ही में रह जाते थे  वो भी क्या दिन थे जब हम भी  स्कूल को  जाते थे  संघ दोस्त के अपने पगडण्डी पर  हम भी  रेस लगाते थे  तब नहीं पता था दुनिया क्या है हर पल शोर मचाते  थे  स्कूल की जब छुट्टी होती तो झटपट भागा करते थे  स्कूल से बाहर आते ही हम दोस्त के संघ हो लेते थे  फिर इधर उधर की बाते हम आपस में करते जाते थे  संघ हंसी ठिठौली धक्का मुक्की पगडण्डी पर करते थे   खेतो में खुस कर गन्ने खाते गायो के साथ रोज मन बहलाते थे  रस्ते...