कुछ बिसरे बातें
चिड़ियों की ची ची करने से हर रोज सुबह उठ जाते थे,
फिर उठकर अपने आँगन में दोबारा से खो जाते थे
माँ कहती थी जल्दी करलो स्कूल तुम्हे भी जाना है
सुनकर यह बातें माँ की हम झटपट अपना मुंह बनाते थे
पर कुछ दोस्त हमारे दरवाजे पर हमको लेने आते थे
हम भी शान से उस झोले को अपने काँधे पर लटकाते थे
न थी कोई बस्ता अपना झोले को ही अपना बस्ता बनाते थे
उस बस्ते में दो किताबे और दो कॉपी लेकर जाते थे
कुछ कलम बिना ही ढक्कन के जब झोले ही में रह जाते थे
वो भी क्या दिन थे जब हम भी स्कूल को जाते थे
संघ दोस्त के अपने पगडण्डी पर हम भी रेस लगाते थे
तब नहीं पता था दुनिया क्या है हर पल शोर मचाते थे
स्कूल की जब छुट्टी होती तो झटपट भागा करते थे
स्कूल से बाहर आते ही हम दोस्त के संघ हो लेते थे
फिर इधर उधर की बाते हम आपस में करते जाते थे
संघ हंसी ठिठौली धक्का मुक्की पगडण्डी पर करते थे
खेतो में खुस कर गन्ने खाते गायो के साथ रोज मन बहलाते थे
रस्ते में बापू को आते देख हम उनके तरफ ही हो जाते थे
बापू के पास जाकर हम पैरो से लिपट जाया करते थे
छुट्टी हो गयी बापू मेरा हंस करके ये बाते बतलाया करते थे
हम भी कभी मैदानों में दोस्त संघ खेला करते थे
तब नहीं पता था खाना भी है और मुझको घर वापस जाना भी है
रोज शाम को आँगन में चूल्हा भी एक जलता था
कौवे भी कांव कांव करते थे और पंछी भी घर को जाते थे
मोती भी दरवाजे पर मेरे आकर बैठा करता था
तवे की पहली रोटी मोती ही खाया करता था
क्या दिन थे वो जब हम भी माँ की बाते सुनते थे
अब माँ कहाँ है नहीं पता बस जीवन कटती है अब यहां
न वो दिन रहे न दोस्त रहे अब पता नहीं वो कहाँ गए
कुछ भूल गए कुछ याद रहे यह कुछ बिसरी बातें यारो की, कुछ बिसरी बाते उन चारो की।।
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