तुंगनाथ, उत्तराखंड
तुंगनाथ पहाड़ों पर बसा एक बहोत ही खूबसूरत गाँव है , पहाड़ो , झरनो और हस्ती खिलखिलाती नदियों के बीच बसा ये एक छोटा सा गाँव को देखकर ऐसा महसूस होता है जैसे अब हमे किसी और चीज की जरूरत ही न हो , हम हमेसा के लिए यहीं ठहर जाते तो कितना अच्छा होता , काश मै भी यहीं का रहने वाला होता ये वाक्य हर कोई बोलता है यहां जो टूरिस्ट आता है . क्योकि ये जगह हरी हरी मखमली घासो से पटी हुई पहाड़ो और नदियों के बीच सफ़ेद और काले बादलो से घिरी हुई कितना सुहानी वादियां लगती है ! बादल तो ऐसे दीखते है जैसे पास ही में है अभी मै पकड़लूंगा मानो की पूरी वादियां इतनी खूबसूरत है जैसे लगता है हम कहीं और नहीं जन्नत का सैर करने निकल पड़े है , तभी अचानक हमे कुछ क्यूट से बच्चे अपने पीठ पर बैग लिए हुए स्कूल से उछलते, दोस्तों से झगड़ते और कूदते हुए हमारे सामने से मखमली घासो के बीच बनी पगडंडी को थामे हुए घर की तरफ तेजी से बढ़ते हुए मन में उत्साह और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए अपने मां से मिलने के लिए बेताब बच्चे अपनी नन्हे नन्हे पाओ से घर की तरफ हो लिए थे , उन्हें देख एक पल सा ऐसा लगा की हम भी अपने बचपन में लौट आए है हमारी चेहरे पर मुस्कुराहट सी आ गयी अपने बचपन को सोच कर ......

यार वो भी क्या दिन थे जब मै और साथ में दो नटखट , शरारती मेरे दोस्त स्कूल में पढ़ा करती थी जो कभी मुझे दुःख में देख ही नहीं सकते जरा सी मायूस होती मै तो आश्मान सर पर उठा लेते कितने मजे थे न कोई टेंशन , न कल की फ़िक्र हम युहीं गुम थे अपनी दुनिया में बस सुबह मै अपनी मां से बोलकर स्कूल के लिए निकल जाती और रस्ते में एक पत्थर पर बैठ कर अपने दोस्तों का इंतजार करती बगैर उनके हम स्कूल ही नहीं जाते वो भी मेरे बगैर स्कूल नहीं जाते हमेसा हम लोग एक दूसरे का इंतजार किया करते थे और हम तीनो साथ ही में स्कूल जाया करते थे ! हम पढ़ते भी थे और खाली प्रियट में एक दूसरे से झगड़ते भी थे खेलते भी थे हमने तो कितनी बार डाँट भी सुनी हमारे सर जोर जोर से डांटते थे की तुम लोग कितना शोर करते हो दुसरो की पढाई का भी ध्यान दो, खुद तो पढ़ाई करते नहीं हो, हम भी अजीब थे जैसे ही सर गए सुना कर हमे कुछ दूर जाते ही फिर भागा दौड़ी करने लग जाते .. इंटरवल में हम लोग कभी कहानियां सुनते , कभी एक दूसरे को परेशां करते और उसके बाद कभी कभी हम लोग टिफ़िन भी बदलकर खाते मै जो लाती वो उनको देती उनकी टिफ़िन खुद खा लेती बहोत मजे किया करती थी कोई खेल में हमसे आगे हो जाए जो हमे पसंद है वो हो ही नहीं सकता था क्योकि हमारे दोस्त कोई ऐसे वैसे नहीं थे मुझसे बहोत प्यार करते थे मन के साफ़ थे मै थोड़ी गुस्से वाली और समझने वाली थी और मेरे दोनों दोस्त एक एकदम भोला और दूसरा एकदम शरारती नटखट ऐसे थे हम तीनो ! जब हमारी छुट्टियां होती स्कूल से तो हम तीनो उसी जगह पर एक दूसरे का फिर से इंतजार करते और साथ लिए तीनो बाते करते और हँसते खेलते एक दूसरे को तंग करते घर की तरफ हो लेते इन्ही मखमली घासो पर बास्ते फेंक कर बैठ जाते हम तीनो और खूब मजे करते
तुंगनाथ पहाड़ों पर बसा एक बहोत ही खूबसूरत गाँव है , पहाड़ो , झरनो और हस्ती खिलखिलाती नदियों के बीच बसा ये एक छोटा सा गाँव को देखकर ऐसा महसूस होता है जैसे अब हमे किसी और चीज की जरूरत ही न हो , हम हमेसा के लिए यहीं ठहर जाते तो कितना अच्छा होता , काश मै भी यहीं का रहने वाला होता ये वाक्य हर कोई बोलता है यहां जो टूरिस्ट आता है . क्योकि ये जगह हरी हरी मखमली घासो से पटी हुई पहाड़ो और नदियों के बीच सफ़ेद और काले बादलो से घिरी हुई कितना सुहानी वादियां लगती है ! बादल तो ऐसे दीखते है जैसे पास ही में है अभी मै पकड़लूंगा मानो की पूरी वादियां इतनी खूबसूरत है जैसे लगता है हम कहीं और नहीं जन्नत का सैर करने निकल पड़े है , तभी अचानक हमे कुछ क्यूट से बच्चे अपने पीठ पर बैग लिए हुए स्कूल से उछलते, दोस्तों से झगड़ते और कूदते हुए हमारे सामने से मखमली घासो के बीच बनी पगडंडी को थामे हुए घर की तरफ तेजी से बढ़ते हुए मन में उत्साह और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए अपने मां से मिलने के लिए बेताब बच्चे अपनी नन्हे नन्हे पाओ से घर की तरफ हो लिए थे , उन्हें देख एक पल सा ऐसा लगा की हम भी अपने बचपन में लौट आए है हमारी चेहरे पर मुस्कुराहट सी आ गयी अपने बचपन को सोच कर ......

यार वो भी क्या दिन थे जब मै और साथ में दो नटखट , शरारती मेरे दोस्त स्कूल में पढ़ा करती थी जो कभी मुझे दुःख में देख ही नहीं सकते जरा सी मायूस होती मै तो आश्मान सर पर उठा लेते कितने मजे थे न कोई टेंशन , न कल की फ़िक्र हम युहीं गुम थे अपनी दुनिया में बस सुबह मै अपनी मां से बोलकर स्कूल के लिए निकल जाती और रस्ते में एक पत्थर पर बैठ कर अपने दोस्तों का इंतजार करती बगैर उनके हम स्कूल ही नहीं जाते वो भी मेरे बगैर स्कूल नहीं जाते हमेसा हम लोग एक दूसरे का इंतजार किया करते थे और हम तीनो साथ ही में स्कूल जाया करते थे ! हम पढ़ते भी थे और खाली प्रियट में एक दूसरे से झगड़ते भी थे खेलते भी थे हमने तो कितनी बार डाँट भी सुनी हमारे सर जोर जोर से डांटते थे की तुम लोग कितना शोर करते हो दुसरो की पढाई का भी ध्यान दो, खुद तो पढ़ाई करते नहीं हो, हम भी अजीब थे जैसे ही सर गए सुना कर हमे कुछ दूर जाते ही फिर भागा दौड़ी करने लग जाते .. इंटरवल में हम लोग कभी कहानियां सुनते , कभी एक दूसरे को परेशां करते और उसके बाद कभी कभी हम लोग टिफ़िन भी बदलकर खाते मै जो लाती वो उनको देती उनकी टिफ़िन खुद खा लेती बहोत मजे किया करती थी कोई खेल में हमसे आगे हो जाए जो हमे पसंद है वो हो ही नहीं सकता था क्योकि हमारे दोस्त कोई ऐसे वैसे नहीं थे मुझसे बहोत प्यार करते थे मन के साफ़ थे मै थोड़ी गुस्से वाली और समझने वाली थी और मेरे दोनों दोस्त एक एकदम भोला और दूसरा एकदम शरारती नटखट ऐसे थे हम तीनो ! जब हमारी छुट्टियां होती स्कूल से तो हम तीनो उसी जगह पर एक दूसरे का फिर से इंतजार करते और साथ लिए तीनो बाते करते और हँसते खेलते एक दूसरे को तंग करते घर की तरफ हो लेते इन्ही मखमली घासो पर बास्ते फेंक कर बैठ जाते हम तीनो और खूब मजे करते
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